लखनऊ, 3 जुलाई 2025। भारत के इतिहास की एक बड़ी ही संवेदनशील और मार्मिक घटना रही है, “अयोध्या गोलीकांड 1990 “,

भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के समय में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ऐसा विभत्स और मार्मिक हत्याकांड भारत में संभवत इससे पहले ना हुआ हो। इस घटना की संवेदनशीलता और महत्व को आज के समाज और वर्तमान पीढ़ी से अवगत कराने के लिए फीचर फिल्म के रूप में बड़े पर्दे पर लाने जा रहे हैं मशहूर फिल्म निर्माता आदित्य नागर और इसका निर्देशन कर रहे हैं प्रसिद्ध निर्देशक अखिलेश कुमार उपाध्याय, इस ऐतिहासिक घटना पर बनने वाली फिल्म का नाम है “कारसेवक” ।
30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 को, जब लाखों कारसेवक राम मंदिर आंदोलन के लिए अयोध्या पहुँचे थे, तब तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अयोध्या में की गई गोलीबारी में दर्जनों श्रद्धालु मारे गए थे। इस मानवता को झकझोर देने वाली हिंसक कार्रवाई ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था।

इस गोलीबारी में पश्चिम बंगाल के दो युवा भाई ‘राम कुमार कोठारी’ और ‘शरद कोठारी’ अपने अप्रतिम बलिदान के कारण विशेष रूप से चर्चा में आए, जिनकी निर्मम हत्या पुलिस गोलीबारी में हो गई थी।
आज भी कोठारी बंधुओं का बलिदान राम भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
आने वाली फ़िल्म ‘कारसेवक’ का उद्देश्य सिर्फ इन घटनाओं को सिनेमाई रूप देना नहीं है, बल्कि उन्हें उस पीढ़ी तक पहुँचाना है, जिसे इन बलिदानों की जानकारी नहीं है और जो इन बलिदानों के महत्व को नहीं जानती है।
यह फ़िल्म उन अनसुनी कहानियों की गाथा हैं, जो दुर्भाग्यवश लोगों तक कभी पहुंच ही नहीं पाई और जिन्हें वर्षों तक दबा दिया गया था।
निर्माता आदित्य नागर ने बताया कि “फ़िल्म की कहानी ऐतिहासिक व प्रमाणिक तथ्यों और प्रत्यक्षदर्शियों के गवाही पर आधारित होगी, ताकि इसमें किसी कल्पनिकता या भटकाव की संभावना ना हो तथा सत्य पर आधारित रचनात्मक पूरी तरह से दर्शकों के सामने निखर कर आए।
इस फिल्म के शूटिंग लोकेशन हरिद्वार और अयोध्या होने की पूरी संभावना है।
फ़िल्म की शूटिंग की शुरुआत संभवतः नवंबर 2025 से की जा सकती है। इसके लिए जिन स्थानों को प्राथमिकता दी जा रही है, उनमें हरिद्वार और अयोध्या प्रमुख हैं। दोनों ही स्थान धार्मिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाने के साथ ही भारतीय संस्कृति के ध्वज धारक भी हैं।
निर्देशक अखिलेश उपाध्याय का मानना है कि “यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है। उन असली नायकों की कहानी कहने की, जिन्होंने अपने प्राण राम मंदिर आंदोलन के लिए न्योछावर कर दिए।”
