संघर्ष समिति ने विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष को दिया ज्ञापन
सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं ने निजीकरण का फैसला वापस लेने की मांग रखी
गोरखपुर। वाराणसी में बिजली टैरिफ पर जनसुनवाई के दौरान विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय रद्द करने की मांग की। संघर्ष समिति के साथ उपभोक्ता परिषद और सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं ने उप्र में विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण को जन विरोधी बताते हुए निजीकरण का निर्णय वापस लेने की मांग की। आज बहुत बड़ी संख्या में पार्षदों और जन प्रतिनिधियों ने जनसुनवाई में पहुंचकर निजीकरण का विरोध किया।
संघर्ष समिति के प्रतिनिधि मंडल ने विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष को इस बाबत एक ज्ञापन भी दिया। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति गोरखपुर के पदाधिकारियों इस्माइल खान, पुष्पेन्द्र सिंह, प्रभुनाथ प्रसाद, संगमलाल मौर्य, संदीप श्रीवास्तव, श्याम सिंह, एन के सिंह, मनोज यादव, राकेश चौरसिया, विजय बहादुर सिंह, करुणेश त्रिपाठी, राजकुमार सागर आदि ने पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय व्यापक जनहित और कर्मचारियों के हित में वापस लेने की मांग की। संघर्ष समिति के प्रतिनिधि मंडल ने उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष श्री अरविंद कुमार को इस बाबत एक ज्ञापन भी दिया। जन सुनवाई के दौरान संघर्ष समिति के केंद्रीय पदाधिकारी महेन्द्र राय और जूनियर इंजीनियर्स संगठन के अध्यक्ष अजय कुमार भी उपस्थित थे।
संघर्ष समिति ने कहा की पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने घाटे के झूठे आंकड़े देकर पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव दिया है। संघर्ष समिति ने कहा कि विद्युत नियामक आयोग निजीकरण के प्रस्ताव को निरस्त कर दे और निजीकरण की अनुमति न दे अन्यथा उपभोक्ताओं को बहुत महंगी बिजली लेनी पड़ेगी और कर्मचारियों की सेवा शर्तों पर भारी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। निजीकरण के बाद अत्यन्त अल्प वेतन भोगी संविदा कर्मियों की हजारों की संख्या में नौकरी जाने का खतरा है। नियमित कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी होगी। निजीकरण न तो उपभोक्ताओं के हित में है और न ही कर्मचारियों के हित में।
संघर्ष समिति ने आंकड़े देते हुए बताया कि पावर कारपोरेशन का प्रबंधन टैरिफ सब्सिडी, किसानों की सब्सिडी, बुनकरों की सब्सिडी और सरकारी विभागों के बिजली राजस्व बकाए को घाटा मानकर तर्क दे रहा है कि इन सभी मामलों में सरकार को फंडिंग करनी पड़ती है जिसे सरकार आगे वहन करने को तैयार नहीं है। संघर्ष समिति ने कहा कि सब्सिडी और सरकारी विभागों के बकाए की धनराशि देना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार इसे घाटा बताकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती। निजीकरण का यह कोई आधार भी नहीं हो सकता।
संघर्ष समिति ने विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष श्री अरविंद कुमार को यह भी कहा कि पावर कारपोरेशन का चेयरमैन रहते हुए आपने 06 अक्टूबर 2020 को एक लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किया है जिसमें लिखा है कि बिजली कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना उप्र में ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का एक तरफा निर्णय इस समझौते का खुला उल्लंघन है। अतः विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष पद पर रहते हुए आपको निजीकरण के मसौदे को मंजूरी नहीं देनी चाहिए।
संघर्ष समिति के साथ उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष श्री अवधेश वर्मा ने तमाम आंकड़े देते हुए निजीकरण के फैसले को गलत ठहराया और कहा कि विद्युत नियामक आयोग किसी भी परिस्थिति में पावर कॉरपोरेशन द्वारा भेजे गए निजीकरण के मसौदे को मंजूरी न दे।
इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष आर के चौधरी, बुनकरों के प्रतिनिधियों, किसान संगठनों के पदाधिकारियों, अनेकों पार्षदों , ग्राम पंचायत आदि सैकड़ों जन प्रतिनिधियों ने संघर्ष समिति के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए साफ शब्दों में मांग की कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण उपभोक्ताओं के हित में नहीं है और इसे पूरी तरह निरस्त किया जाना चाहिए।
निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन के 226 वें दिन आज प्रदेश के समस्त जनपदों और परियोजनाओं पर बिजली कर्मियों ने व्यापक जनसंपर्क किया और विरोध प्रदर्शन किया।