लोकसभा में संविधान पर चर्चा के अंत में प्रधानमंत्री के अभिभाषण में मोदी जी बोले,
दुनिया में जब भी लोकतंत्र की बात होगी, कांग्रेस के माथे पर लगा इमरजेंसी का कलंक भुलाया नहीं जाएगा।
यह संविधान का सामर्थ्य था कि मेरे जैसा आम आदमी देश के इस सर्वोच्च जिम्मेदारी के पद तक पहुँच सका। क्योंकि मैं किसी बड़े घराने में पैदा नहीं हुआ।
नेहरू जी ने देश के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर कहा था, अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच आ जाए तो हर हाल में संविधान में संशोधन किया जाए।
कांग्रेस को संविधान संशोधन का खून मुंह में लग गया तो फिर कांग्रेस लगातार संविधान का शिकार करती रही। 6 दशक में 75 बार कांग्रेस ने संविधान में संशोधन किया।
इंदिरा गाँधी ने 1971 में न्याय पालिका को नियंत्रित किया। अदालतों का सारा अधिकार छीन लिया। 1975 में तो अपनी कुर्सी बचाने के लिए संविधान का दुरूपयोग करते हुए देश में इमरजेन्सी थोप दी।
संविधान बदलने की यह परंपरा जो नेहरू जी ने शुरू की, इंदिरा जी ने आगे बढ़ाया, उसे राजीव गाँधी ने खाद पानी दिया और एक गरीब महिला को गुजारा भत्ता देने के अदालती आदेश को संविधान संशोधन के जरिए पलट दिया।
नेहरू गाँधी परिवार की आगे की पीढ़ी भी यही कर रही है। कैबिनेट के फैसले को अपने अहंकार से भरे लोगों ने पत्रकारों के सामने फाड़ दिया और कैबिनेट ने उसे वापस ले लिया। यह कौन सी व्यवस्था है।
कांग्रेस ने निरंतर संविधान की अवमानना की। हर मौके पर संविधान की मूल भावना को चोट पहुंचाई। संविधान से खिलवाड़ कांग्रेस की रगों में है। कांग्रेस की रगों में सत्तावाद और परिवारवाद है।
कांग्रेस के मुंह से तो संविधान शब्द ही ठीक नहीं लगता, जो अपनी पार्टी के ही संविधान को नहीं मानते, वो कैसे देश के संविधान को स्वीकार कर सकते हैं। कांग्रेस अपनी पार्टी का संविधान मानती तो नेहरू की जगह सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते।
हमारे लिए संविधान उसकी पवित्रता, उसकी शुचिता सर्वोपरि है। जब जब हमें संविधान की कसौटी पर कसा गया हम खरे उतरे हैं। अटल जी ने 13 दिन सरकार चला कर इस्तीफा दे दिया, सौदेबाजी नहीं की।अटल जी ने संविधान का रास्ता चुना। कांग्रेस के जमाने में वोट फॉर कैश कांड से वोट खरीदा गया।